Brahmaputra River
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    ब्रहमपुत्र नदी भारत की जीवन रेखा है,यह तीन देशों के भू-भागों को सिंचती है. ब्रहमपुत्र देश के सांस्कृतिक केंद्र की निर्माणकर्ता और एक प्राचीन गौरवशाली विरासत है, जो दुनिया भर की सभ्यताओं को आकर्षित करती है. ब्रहमपुत्र नदी रूपी इस विरासत को हम ट्रैक करेंगे तथा भारत भूमि की इस जीवन रेखा के लिए किसी भी खतरे को दस्तावेजित करने का पूर्ण प्रयत्न करेंगे.


ब्रह्मपुत्र नदी - सभ्यता एवं संस्कृति की प्रतीक

ब्रह्मपुत्र नदी विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृति के समन्वय का जीवन्त उदाहरण है। इसके तटों पर कई सभ्यताओं और संस्कृतियों का मिलन हुआ। आर्य-अनार्य, मंगोल – तिब्बती, वर्मी-द्रविड, मुगल- आहोम संस्कृतियों की टकराहट और मिलन का गवाह यह ब्रह्मपुत्र नदी रही है। पहले जब कोई बाहरी व्यक्ति ब्रह्मपुत्र के किनारे नौकरी या रोजगार की तलाश में आता था तो उनकी पत्नियां ‘मत न सिधरों पूरब की चाकरी’ जैसे गीतो को गा कर अपना दु:ख व्यक्ति करती थी। क्यों कि उनको यह संदेह था कि ब्रह्मपुत्र के किनारे बसने वाली महिलाए अति सुंदर होती हैं और पुरुषों को भेड़ बकरा बना कर अपने पास रख लेती हैं, भला ऐसा हो भी क्यों न, यहीं की रानी मृणावती के केशों की घनी छाँव में उलझकर गुरु गोरखनाथ के गुरु महान तांत्रिक, महायोगी मछिंदरनाथ भी अपना जप तप विसरा कर यही राम गए। वो तो गोरखनाथ ने जब “ जाग मछिंदर गोरख आया “ की अलख जगाई , तब वह मुक्त हुये! किन्तु धीरे- धीरे  यह भ्रम टूट गया और राजस्थान से आकर कई घराने यहां बस गए।

यहां की संस्कृति में भोजन मे चावल के साथ मत्स्य – मांसाहार अधिक प्रिय रहा है, जिसका कारण यहां धान की अधिक पैदावार हो सकती है, यहां की चावल की मुख्य प्रजातियां आहुवाओं, शालि और जोहा है, किन्तु बाहरी व्यक्तियों ने इसमें अपनी संस्कृति का भोजन मिलाकर और भी सरस कर दिया। ब्रह्मपुत्र के किनारे बांस की अधिकता है, जिसके कारण यहां के निवासों में बांस का प्रयोग बहुतायता से होता है। बांस की कोमल जड़ से यहां पर खोरचा नामक खट्टा साग बनाया जाता है, जो कि बहुत स्वादिष्ट होता है, इससे अचार भी बनाया जाता है। इसके किनारे –किनारे चाय के दर्शनीय बागान पाये जाते है , भारत मे स्थिति चाय कि मात्र का 50% चाय यही होती है।

यहां की संस्कृति और सभ्यता के बारे में प्रख्यात गायक डॉ भूपेन हजारिका के गीत की इन पंक्तियो में महाबाहु ब्रह्मपुत्र की गहराई को महसूस किया जा सकता है –

महाबाहु ब्रह्मपुत्र, महामिलनर तीर्थ कोटो जुग धरे ,आइसे प्रकासी समन्वयर तीर्थ।

 

(ओ महाबाहु ब्रह्मपुत्र, महमिलन का तीर्थ, कितने युगों से व्यक्त करते रहे समन्वय का अर्थ)

ब्रह्मपुत्र असमिया रचनाकारों का प्रमुख पात्र रहा है, चित्रकारों के लिए आकर्षक विषय, नाविकों के लिए जीवन की गति है, तो मछुआरो के लिए ज़िंदगी। पूर्वोत्तर में प्रवेश करने का सबसे पुराना रास्ता। जब यातायात का अन्य कोई साधन न था, तब इसी के सहारे पूरे देश का संबंध पूर्वोत्तर के साथ था।

इसी घाटी मे शंकरदेव, माधवदेव, दामोदरदेव जैसे अनेक संत हुये। शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध, जैन, सिख धर्मों के मंदिर, सत्र ,गुरुद्वारे, दरगाह – मस्जिदें और चर्च भी इसके तटों पर खड़े है। इसके किनारे असम का पर्याय कामाख्या का शक्ति पीठ है, ध्रुबड़ी का प्रसिद्ध गुरुद्वारा दमदमा साहिब भी इसी के तट पर स्थित है जहां पर गुरु नानकदेव और गुरु तेगबहादुर स्वयं पधारे थे।

जिस तरह अनेक नदियां इसमें समाहित होकर आगे बढ़ी है, उसी तरह कई संस्कृतियों ने मिलकर एक अलग संस्कृति का गठन किया है। ब्रह्मपुत्र नदी पूर्वोत्तर की पहचान है, जीवन है और संस्कृति भी। असम का जीवन तो इसी पर निर्भर है। असमिया समाज, सभ्यता और संस्कृति पर इसका प्रभाव युगों–युगों से प्रचलित लोककथाओं और लोकगीतों में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए एक असमिया लोक गीत -

ब्रह्मपुत्र कानो तें , बरहमुखरी जूपी, आमी खरा लोरा जाई,

ऊटूबाई नीनीबा, ब्रह्मपुत्र देवता , तामोल दी मनोता नाई।

(ब्रह्मपुत्र के किनारे है बरहमुथरी के पेड़, जहां हम जलावन लाने जाते है, इसे निगल मत लेना ब्रह्मपुत्र देव! हमारी क्षमता तो तुम्हें कच्ची सुपारी अर्पण करने तक की नहीं है)

इसी घाटी मे शंकरदेव, माधवदेव, दामोदरदेव जैसे अनेक संत हुये। शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध, जैन, सिख धर्मों के मंदिर, सत्र ,गुरुद्वारे, दरगाह – मस्जिदें और चर्च भी इसके तटों पर खड़े है। इसके किनारे असम का पर्याय कामाख्या का शक्ति पीठ है, ध्रुबड़ी का प्रसिद्ध गुरुद्वारा दमदमा साहिब इसी के तट पर स्थित है.. जहां पर गुरु नानकदेव और गुरु तेगबहादुर स्वयं पधारे थे। 


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तीन देशों की जीवनरेखा मानी जाने वाली ब्रहमपुत्र नदी को निर्मल और अविरल बनाने के लिए प्रकृति और समाज से जुड़े लोग लगातार कार्य कर रहे हैं. इन अभियानों से जुडी यात्राओं, शोध, सामुदायिक कार्यों और ज़मीनी प्रभाव को दस्तावेज़ित करने का प्रयास हम सभ्य समाज के सहयोग द्वारा चलने वाले इस पोर्टल पर करेंगे. प्रासंगिक अपडेट पाने के लिए अपना नाम और ईमेल ज़रूर भरें.

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